Sadhana Shahi

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लाल साड़ी (कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु-03-Mar-2024

दिनांक- 03,03 2024 दिवस- रविवार विषय- लाल साड़ी (कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु

एक 10 साल का नन्हा बच्चा अपनी माॅं के साथ बाज़ार से घर जा रहा था। बच्चा आगे निकल गया, और माॅं थोड़ी पीछे रह गई। बच्चा पीछे मुड़कर देखा तो उसकी माॅं एक दुकान पर खड़ी होकर किसी चीज़ को एकटक निहार रही है। बच्चा अपनी माॅं के पास गया, और पूछा- माॅं- माॅं! आप क्या देख रही हैं? तब माॅं ने कहा- कुछ नहीं बेटा । बच्चे ने कहा- सच बोलिए न माॅं, क्या देख रही थीं?आप को मेरी कसम। बच्चे के इस प्रकार ज़िद्द करने तथा स्वयं की शपथ देने पर माॅं ने कहा वो जो लाल रंग की साड़ी है अच्छी लग रही है न। माँ की इस प्रकार की बातों को सुनकर बच्चे ने कहा आप को पसंद है? बच्चे की बात सुनकर उसकी माॅं कभी साड़ी को देखती और कभी बच्चे को फिर उसका माथा सहलाते हुए बोली। हम ग़रीबों की पसंद कहाॅं होती है। हमें तो बस जो मिल जाता है, वही हम खा और पहन लेते हैं। और इसी तरह की बातें करते हुए माॅं और बेटे दोनों घर चले गए। घर जाकर दोनों ने खाना खाया, खाना खाने के पश्चात दोनों आराम करने के लिए लेटे। माॅं को नींद आ गई लेकिन बच्चे की आंँखों में तो वह लाल साड़ी घूम रही थी। बच्चा चुपके से उठा ,अपना गुल्लक उठाया और सीधे साड़ी की दुकान पर आ गया। और दुकानदार को साड़ी दिखाकर पूछा - वह साड़ी कितने की है? दुकानदार टकटकी लगाए बच्चे को देखते जा रहा था। और बच्चे से पूछा- तुम्हारे पास कितने पैसे हैं? बच्चे ने बड़े शान से कहा- बहुत सारे, एक गुल्लक वो भी पूरा भरकर। इतना कहते हुए बच्चा गुल्लक को ज़मीन पर पटका और अंजुली भरकर सिक्का उसके काउंटर पर रख दिया। दुकानदार एक स्नेहिल नज़रों से एकटक बच्चे को देखता रहा, और मांँ के प्रति उसके आदर प्रेम और श्रद्धा को प्रणाम करता रहा। दुकानदार को इस प्रकार स्वयं को देखते हुए देखकर बच्चे को लगा शायद इतने पैसों में दुकानदार उसे साड़ी नहीं देगा। अतः उसने दुकानदार से पूछा क्या अंकल इतने पैसे में साड़ी नहीं मिलेगी? दुकानदार की तंद्रा टूटी और उसने हड़बड़ाते हुए कहा नहीं-नहीं बेटे मिल जाएगी। आपके पास तो बहुत पैसे हैं। इतने में तो साड़ी भी मिल जाएगी और कुछ पैसे बच भी जाएंँगे। इतना कहते हुए दुकानदार ने पूरे सिक्कों में से ₹100 के सिक्के ले लिया और बाकी सिक्के एक पॉलिथीन में बाॅंधकर बच्चे को वापस कर दिया। और फिर उसकी माॅं के द्वारा पसंद की गई साड़ी को एक पन्नी में डालकर बच्चे को दे दिया । और एक बार फिर से पैसे गिनने लगा। बच्चा दोबारा पैसे गिनते देखा तो पूछा साहब कुछ पैसे कम हैं क्या? तब दुकानदार ने कहा, नहीं- नहीं मैं देख रहा था कि, कहीं पैसे अधिक तो नहीं ले लिया हूॅं। जब दुकानदार यह सब कुछ कर रहा था ,तब दुकान का नौकर दुकान की साफ़- सफाई करते हुए कनखी आंँखों से सारी लीला को देख रहा था। और अपने मालिक पर बलिहारी जा रहा था। जब बच्चा साड़ी लेकर चला गया उसके बाद नौकर ने दुकानदार से पूछा साहब यह साड़ी तो ₹3000 की थी और आपने इसे ₹100 में ही दे दिया, आपने ऐसा क्यों किया? इसमें तो आपको बहुत घाटा हो गया। तब दुकानदार एक संतुष्टि भरी मुस्कान मुस्कुराते हुए बोला- हमारे लिए ₹3000 कोई बहुत बड़ी चीज़ नहीं है, लेकिन उस बच्चे के लिए ₹3000 तीन लाख के समान है। उसे अंदाज़ा नहीं है कि इतनी मॅंहगी साड़ियाॅं भी बाजार में बिकती हैं। पर जब कुछ सालों बाद वह‌ बड़ा होने पर उस साड़ी को देखेगा तब उसे साड़ी की कीमत समझ में आएगी। उस वक्त उसे मेरा कृत्य याद आएगा कि मैंने क्यों उसे तीन- चार हजा़र की साड़ी ₹100 में दे दिया था। तब उसे समझ आएगा लोग बेवजह ही कहते हैं दुनिया में अच्छे लोगों की कमी हो गई है। किंतु नहीं ,दुनिया अच्छे लोगों से खाली नहीं हुई है आज भी दुनिया में अच्छे लोग हैं। और इस तरह का सकारात्मक विचार उसे भविष्य में एक सच्चा और नेक इंसान बनने में मदद करेगा। वह भी किसी बच्चे की माॅं की चाहत को पूरा करने का हर संभव प्रयास करेगा। इस प्रकार अच्छाई के एक दिए से कई दिए जलेंगे और एक दिन ऐसा आएगा जब वो कई दिए अपने प्रकाश से बुराई, कलमषता को दूर कर धरा को अच्छाई के प्रकाश से प्रकाशित करेंगे।

साधना शाही,वाराणसी

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3 Comments

Gunjan Kamal

05-Mar-2024 07:37 PM

बहुत खूब

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Mohammed urooj khan

05-Mar-2024 11:12 AM

👌🏾👌🏾👌🏾

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hema mohril

05-Mar-2024 09:43 AM

Amazing

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